Tuesday, June 11, 2013

विद्याचरण शुक्ल का निधन


 










पूर्व केंद्रीय मंत्री और छत्तीसगढ़ से पार्टी के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल का आज गुड़गांव के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह एक पखवाड़ा पहले छत्तीसगढ़ में पार्टी नेताओं के काफिले पर नक्सलवादियों के हमले में गोली लगने से घायल हो गए थे।

निकटवर्ती गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी हास्पिटल में इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनिस्थिसियोलॉजी के प्रमुख यतीन मेहता ने बताया कि 84 वर्षीय शुक्ल ने दोपहर बाद दो बजकर 38 मिनट पर अंतिम सांस ली। उन्होंने बताया कि शुक्ल के प्रमुख अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। गोली लगने से हुए घाव और बड़ी उम्र के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका। शुक्ल के परिवार में पत्नी और तीन पुत्रियां हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेता के निधन पर शोक प्रकट किया।

डॉक्टरों के मुताबिक विद्याचरण शुक्ल को नक्सली हमले के दौरान करीब 14 छर्रे लगे थे। ये छर्रे उनके चेहरे, सीने, पेट और जांघों पर लगे। एक छर्रा शुक्ल के पेट में घुस गया था और फिर आंतों को छेदकर लिवर को नुकसान पहुंचाते हुए पीठ से बाहर निकल गया था। इस छर्रे ने उन्हें ज़्यादा नुकसान पहुंचाया। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की जीरम घाटी के क़रीब हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और कांग्रेस नेता महेंद्र करमा समेत 28 लोगों की मौत हो गई थी।

25 मई को छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में हुए माओवादी हमले में घायल वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल को तीन गोलियों लगी थीं और उनका गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में इलाज चल रहा था।

शुक्ल को घायल होने के अगले दिन ही एयर लिफ्ट कर रायपुर से यहां लाया गया था। शुरुआत में शुक्ल की हालत में सुधार हुआ, मगर एक हफ्ते बाद ही हालत फिर बिगड़ने लगी। इनफेक्शन के चलते उनके अंग काम करना बंद करने लगे।

विद्याचरण शुक्ल मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के छोटे बेटे एवं तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ल के भाई थे। जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो विद्याचरण शुक्ल नए राज्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे।

वह महज 29 साल की उम्र में महासमुंद से सांसद बने थे और उस वक्त सबसे कम उम्र के सांसद थे। उसके बाद शुक्ल इंदिरा कैबिनेट में कई पदों पर रहे। इमरजेंसी के दौरान इंद्र कुमार गुजराल को हटाकर शुक्ल को ही सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया।

विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के सूचना प्रसारण मंत्री के रूप में वे बहुत चर्चित हुए थे।

वे 1957 से 1962 के बीच तीसरी लोकसभा में पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। इसके बाद वे चौथी, पाचवीं, सातवीं, आठवीं, नौवी, दसवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए। वे नरसिंह राव सरकार के बाद कई बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों में गए जिसमें चन्द्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी और भाजपा शामिल है। इसके बाद वे कांग्रेस में लौट आए।

सोनिया गांधी से उनके ताल्लुकात कभी मधुर नहीं रहे क्योंकि राजनीतिक हलकों में ये चर्चा रही कि वे किसी समय राजीव गांधी को हटाकर खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव के दौर में विद्याचरण शुक्ल ताकतवर राजनेता के रूप में पहचाने जाते थे।

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